प्राकृतिक खेती से ऑर्गेनिक फसल उगा रहे बक्सर के आशुतोष:खुद की बनाई प्राकृतिक खाद से बढ़ाई मिट्टी की उर्वरता, स्थानीय बाजार में खूब मांग

Sep 1, 2025 - 08:30
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प्राकृतिक खेती से ऑर्गेनिक फसल उगा रहे बक्सर के आशुतोष:खुद की बनाई प्राकृतिक खाद से बढ़ाई मिट्टी की उर्वरता, स्थानीय बाजार में खूब मांग
जैविक कृषि के संबंध में तो हम सुनते-देखते आए हैं। लेकिन इस विधि के अलावा एक ऐसी विधि भी है, जिसका प्रयोग बक्सर के नया भोजपुर के किसान संतोष पांडेय उर्फ़ मुन्ना पांडेय करते हैं। यह विधि है- प्राकृतिक खेती। उनके मुताबिक प्राकृतिक खेती पुरानी पद्धति है, जिससे मिट्‌टी की उर्वरा शक्ति न सिर्फ बरकरार रहती है, बल्कि और बढ़ती है। आशुतोष इस खेती में खुद की बनाई हुई प्राकृतिक खाद का प्रयोग करते हैं। वे बताते हैं कि इस खाद से मिट्‌टी में माइक्रो ऑर्गेनिज्म, अर्थात सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है, जिससे मिट्‌टी की उर्वरता बढ़ती रहती है। इससे खेतों में रासायनिक खाद की निर्भरता बेहद कम हो जाती है। गोबर और गोमूत्र से बनाते हैं प्रकृतिक खाद खेतों में रासायनिक खाद के उपयोग को कम करने के लिए आशुतोष प्राकृतिक खाद का उत्पादन करते हैं। वे दो तरह के प्राकृतिक खाद बनाते हैं और बीजोपचार के लिए भी प्राकृतिक पदार्थों से घोल बनाते हैं। प्राकृतिक खाद और घोल बनाने में आशुतोष गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन और पीपल के पेड़ की मिट्टी का उपयोग करते हैं। जिन तीन प्रकार के प्राकृतिक खाद और घोल का वे निर्माण करते हैं, उनका इन्होंने नाम भी दे रखा है। ये हैं युवामृत, धनामृत और बीजामृत। कम लागत और ज्यादा मुनाफा आशुतोष कहते हैं कि इन प्राकृतिक खादों से खेती की लागत घटती है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है। इससे खेती उनके लिए अधिक मुनाफे का सौदा साबित होती है। इनका उत्पादन व्यवसायिक रूप से नहीं, बल्कि खुद के उपयोग के लिए करते हैं। वे पांच एकड़ में खेती करते हैं, जिसमें इसका प्रयोग करते हैं। इसके प्रयोग से फसलों के उत्पादन की दर सामान्य खेती के मुकाबले काफी बढ़ जाती है। वे इस पद्धति से खेती करना अपने इलाके के किसानों को भी सिखाते हैं। दोनों प्राकृतिक खाद की खासियत आशुतोष ने बताया कि, इन दोनों प्रकार की खाद का अलग-अलग प्रयोग करते हैं। इनके फायदे भी अलग-अलग हैं। युवामृत खाद- यह खेत की उर्वरता बढ़ाने में प्रयुक्त होता है। यह मिट्‌टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाता है और मिट्टी का उपजाऊपन को बढ़ाता है। धनामृत खाद- यह पौधा लगाने के समय किया जाता है। इसे ठोस रूप में दिया जाता है, जिससे पौधे में बढ़ोतरी तेजी से होती है। यह भी खाद ही है। बीजामृत खाद- इसका प्रयोग बीज को उपचारित करने में होता है। यह फंगीसाइड्स के तौर पर काम करता है। इसे बीज बोने से पहले उपयोग करते हैं। इससे बीमारियां नहीं लगतीं और बीज अच्छी तरह से अंकुरित होता है। आशुतोष बताते हैं कि गोबर को फंगीसाइड्स के रूप में इस्तेमाल करके मिट्‌टी को नाइट्रोजन की आपूर्ति की जाती है, जिससे फसल मजबूत और स्वस्थ होती है। यही गोबर खेतों में चारा उगाने के लिए भी खाद के रूप में काम आता है। प्राकृतिक उत्पादों की मार्केट में डिमांड आशुतोष पांडेय प्राकृतिक पद्धति से जिन फसलों को उपजाते हैं उनमें करेला, केला, निंबू, बैंगन, पपीता, फूलगोभी व शिमला मिर्च शामिल हैं। इन फसलों से हुए उत्पादन की स्थानीय मार्केट में काफी डिमांड रहती है। इन फसलों के अलावा वे मशरूम का उत्पादन भी करते हैं। आशुतोष बताते हैं कि मशरूम उत्पादन के मामले में अब बाहरी उत्पाद पर निर्भरता लगभग खत्म हो चली है। स्थानीय मशरूम का मार्केट तेजी से बढ़ा है। अब इसके साथ ही वे स्ट्रॉबेरी की खेती में भी हाथ आजमाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि ट्रॉयल के तौर पर उन्होंने इसकी थोड़ी खेती की थी। इसका परिणाम उत्साहजनक रहा है। अगले माह से स्थिति अनुकूल रही तो बड़े पैमाने पर इसकी खेती कर सकते हैं। उनका कहना है कि स्ट्रॉबेरी के मामले में अपने राज्य की जलवायु अनुकूल है। मेडिकल फील्ड को छोड़ खेती की तरफ मुड़े आशुतोष 2006 से कृषि से जुड़े हैं। इससे पहले वे मेडिकल फील्ड में एमआर थे। पर खेती की तरफ उनका रुझान हमेशा से रहा है। उन्होंने कहा कि खेती का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें ग्रोथ का असीमित स्कोप है। कम इन्वेस्टमेंट में ज्यादा मुनाफा के लिए यह क्षेत्र सबसे ज्यादा उपयुक्त है। इसके लिए प्रॉपर गाइड व मैनेजमेंट की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में कृषि विज्ञान केंद्र बक्सर से उन्हें गाइडेंस और मदद मिली। इसके अलावा विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों से उन्होंने जानकारी हासिल की। इससे वे कृषि के क्षेत्र में नवाचारों का प्रयोग कुशलता से कर पाते हैं। वे हर साल अपनी 5 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। मौसमी हरी सब्जियां भी उगाते हैं आशुतोष इनमें परंपरागत विधि से मशरूम उत्पादन के साथ ही वे मौसम के अनुसार हरी सब्जियां भी वैज्ञानिक तकनीक से उगाते हैं। वे बताते हैं कि पारंपरिक तरीके से खेती करने पर उत्पादन सीमित रहता है। लेकिन जब खेती को विज्ञान से जोड़ते हैं तो लागत घटती है और उत्पादन दोगुना होता है।

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