जमुई में 25 साल बाद नक्सल प्रभावित गांवों में वोटिंग:चोरमारा समेत 28 सेंटरों पर 27000 वोटर पहली बार गांव में डलेंगे वोट
बदलते वक्त के साथ अब वह दिन आ गया है जब ढाई से तीन दशक बाद जमुई के हजारों मतदाता अपने ही गांव में मतदान करेंगे। इस बार विधानसभा चुनाव में जिले के सुदूर और नक्सल प्रभावित इलाकों में मतदाताओं को वोट डालने के लिए लंबी दूरी नहीं तय करनी पड़ेगी। नक्सल उन्मूलन और पैरामिलिट्री की तैनाती से संभव जमुई का चोरमारा इलाका जो कभी लाल गलियारे के नाम से कुख्यात था,अब लोकतंत्र छांव में है। नक्सल उन्मूलन और पैरामिलिट्री फोर्सेस की तैनाती का असर है कि इस बार इन इलाकों में पहली बार EVM की "पी" आवाज सुनाई देगी। नक्सल मुक्त होने के बाद चुनाव आयोग ने जिले के 28 मतदान केंद्रों को उनके मूल स्थान पर बहाल किया है, जिससे करीब 27 हजार मतदाता गांव में ही वोट डाल सकेंगे। पहले वोट डालने के लिए 20 किमी चलना पड़ता था पैदल चोरमारा निवासी मंगल कोड़ा बताते हैं कि पहले वोट डालने के लिए 20 किलोमीटर पैदल चलकर बरहट जाना पड़ता था।इस बार गांव में ही बूथ बन जाने से लोगों में खुशी है।वे कहते हैं,पहले डर का माहौल था,अधिकारी तक नहीं आते थे।अब नक्सली खत्म हो गए हैं, सरकार ने गांव में ही बूथ बना दिया, अब सभी वोट डालेंगे। इसी गांव की चैती देवी,जो कुख्यात नक्सली अर्जुन कोड़ा की पत्नी हैं, बताती हैं कि पहले नक्सलियों के डर से वोट नहीं पड़ते थे,अब गांव में मतदान होना खुशी की बात है। हालांकि, उन्होंने कहा कि उनके पति ने आत्मसमर्पण कर दिया है लेकिन सरकार की ओर से कोई विशेष लाभ नहीं मिला। लोग बोले, पुलिस कैंप होने के कारण डर नहीं लगता उन्होंने यह भी आशंका जताई कि आज पुलिस कैंप होने के कारण डर नहीं लगता है लेकिन कैंप हटने के बाद फिर पहले जैसा हो जाएगा। मैं गांव से बाहर नहीं जाती मुझे डर लगता है कि नक्सली की पत्नी होने के कारण मुझे कोई मार ना दे गांव के उमेश कोड़ा कहते हैं कि 20 साल बाद हमारे गांव में बूथ बना है। पहले 30 किलोमीटर दूर बरहट जाकर वोट देते थे। अब गांव में बूथ बन गया है, इस बार वोटिंग प्रतिशत भी बढ़ेगा।
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