Bihar News: जमीन लेकर मुआवजा देना भूल गयी सरकार, 68 साल बाद कोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे भू-स्वामी
मुख्य बातें
Bihar News: बरौनी. तेघड़ा प्रखंड क्षेत्र के बरौनी नगर परिषद में राजेन्द्र रोड बरौनी की लगभग दो बीघा से अधिक जमीन लगभग 67 वर्षों से सरकार कालीकरण सड़क के रूप में उपयोग कर रही है. जिसे पीडब्लूडी एवं पथ निर्माण विभाग ने पत्र के माध्यम से स्वीकार भी किया है. भू स्वामी किसान लगातार पत्राचार के माध्यम से पदाधिकारी और संबंधित विभाग से इस दिशा में पहल कर भूमि अधिग्रहण और मुआवजा की प्रक्रिया पूरा करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार की लचर व्यवस्था भू स्वामी की कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं. विवश होकर भू स्वामी किसान ने न्याय की गुहार के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का निर्णय लिया है.
इन दिनों सुर्खियों में है राजेंद्र रोड
सुशासन की सरकार में जब पदाधिकारी संबंधित मंत्रालय और विभाग के आदेश और निर्देश का पालन नहीं करें तो उसे क्या कहा जायेगा और वैसे पदाधिकारी पर क्या कार्रवाई होनी चाहिए यह राज्य सरकार को तय करने की जरूरत है. वह भी उस स्थिति में जब विकास का कार्य भू स्वामी के भूमि अधिग्रहण, मापी और मुआवजा दिये बगैर संभव नहीं है. उसमें भी रोचक तथ्य यह है कि भू स्वामियों द्वारा लगातार संबंधित विभाग और पदाधिकारी को भूमि अधिग्रहण को लेकर मापी और मुआवजा की प्रक्रिया पूरा करने को लेकर पत्र के माध्यम लगातार सूचित किया जा रहा हो. ऐसा ही वाकया बेगूसराय जिला के तेघड़ा अनुमंडल अंतर्गत बरौनी नगर परिषद के फुलवड़िया थानाक्षेत्र राजेन्द्र रोड बरौनी का है. जिस जगह का उपयोग कालीकरण सड़क के रूप में पथ निर्माण विभाग के द्वारा किया जा रहा है. यह सड़क और विभाग की शिथिलता के कारण राजेंद्र रोड इन दिनों काफी सुर्खियों में है.
सरकार के पास स्वामित संबंधी कोई दस्तावेज नहीं
जानकार बताते हैं कि लगभग 67 वर्षों से पथ निर्माण विभाग इस जमीन का विधिवत अधिग्रहण किए बगैर, भू अर्जन विभाग तथा पथ निर्माण विभाग एवं वर्तमान नगर परिषद बरौनी के पास सड़क के उपयोग की इस जमीन का स्वामित संबंधी कोई दस्तावेज तथा वैज्ञानिक नापी का नक्शा नहीं होने पर भी उपयोग किया जा रहा है. जिसका पीडब्लयूडी विभाग ने 21 मई 2009 पत्र पत्रांक 488 के माध्यम से गिरीश प्रसाद गुप्ता को सूचित किया था की राजेन्द्र रोड सड़क की जमीन अधिग्रहण नहीं की गयी है तथा राजेन्द्र रोड सर्वे नक्शा में नहीं है. लेकीन उन्होंने उक्त पत्र में स्वीकार किया था कि राजेन्द्र रोड की लंबाई 520 मीटर यानी 1706 फीट और कालीकृत की चौड़ाई 16 फीट है. इस पथ का मरम्मती या निर्माण कार्य पथ निर्माण विभाग, बेगुसराय द्वारा किया जा रहा है. इसलिए वर्तमान परिस्थिति में राजेंद्र रोड की रय्यती जमीन का क्षतीपूर्ति तथा मुआवजा भुगतान करने के लिये पथ निर्माण विभाग तथा पीडब्लयूडी विभाग और नगर परिषद बरौनी की जिम्मेदारी बनती है. और भू स्वामियों को अतिक्रमण का भी भय दिखाया जाता है. जबकि वास्तविकता सरकार के भ्रष्ट नीति की पोल खोलते नजर आ रही है.
बिहार का शायद यह अकेला मामला
जानकारों के मुताबिक पूरे बिहार का शायद यह एक ऐसा अकेला मामला है जहां बगैर भूमि अधिग्रहण और मुआवजा की प्रक्रिया के वर्तमान बरौनी नगर परिषद के राजेन्द्र रोड की जमीन का सरकार 67 वर्षों से उपयोग कर रही है और भू स्वामी भूमि अधिग्रहण और मुआवजा की प्रक्रिया पूरा करने को पत्र लिख रहे हैं. बताते चलें कि मिरचैया चौक से सटे गिरीश प्रसाद गुप्ता के 1929 में बने खपरैल घर तक उनके पूर्वज़ स्व लक्ष्मी साह एवं स्वर्गीय बद्री साह (पिता-गिरीश प्रसाद गुप्ता) की लगभग एक बीघा से आधिक रैयती जमीन और घनश्याम मिश्र, बाबू साहब मिश्र सहित सभी परिजन के पूर्वज स्व बैद्यनाथ मिश्र, स्व जयनारायण मिश्र, स्व महेश मिश्र वगैरह की लगभग एक बीघा के आसपास की रैयती जमीन जो सेंट्रल बैंक तक है. जिनके और भी वरिशान मौजूद हैं.
1958 में राष्ट्रपति के लिए हुआ था सड़क का निर्माण
जानकारों के मुताबिक वर्तमान बरौनी नगर परिषद क्षेत्र अंतर्गत राजेंद्र रोड बरौनी 1958 में अस्तित्व में आया था. जब देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ राजेन्द्र प्रसाद का आगमन बिहार के गौरव और किसानों की शान देश रत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद दुग्ध उत्पादन सहकारी संघ लिमिटेड ( बरौनी डेयरी) का उद्घाटन करने आये थे. उसी समय राष्ट्रपति के सुगम सुविधाजनक यात्रा के लिए इस रास्ते का पुनरुद्धार कर सौंदर्यीकरण कार्य पीडब्लूडी किया गया था और रेड कार्पेट भी बिछाये गये थे. जिसके बाद 67 वर्षों से इस सड़क को राजेन्द्र रोड के नाम से जाना जाता है या यूं कहें की देश के प्रथम राष्ट्रपति के नाम से इस सड़क का नामकरण कर दिया गया. देश के प्रथम राष्ट्रपति के आगमन पर जहां लोगों ने उस समय अपने बाग बगीचे, डेरा झोपड़ी को उजड़ता देख उनके सम्मान में तत्कालीन प्रशासन को सौंप दिया था. आज 67 वर्षों से मापी, भूमि अधिग्रहण और मुआवजा के प्रतिक्षा में भूस्वामी पत्राचार को विवश हैं.
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