'चुनाव प्रचार के दौरान कार्यकर्ता हरा गमछा नहीं रखें':पारू से आरजेडी प्रत्याशी ने बीजेपी को घेरा, कहा- चुनाव जनता की आवाज बनाम झूठे प्रचार की है
मुजफ्फरपुर जिले के पारू विधानसभा क्षेत्र में महागठबंधन के आरजेडी प्रत्याशी शंकर प्रसाद यादव ने कार्यकर्ता सम्मेलन में अनुशासन और संयम का संदेश दिया। सम्मेलन में उन्होंने दो महत्वपूर्ण घोषणाएं की। पहली चुनाव प्रचार के दौरान कार्यकर्ता हरा गमछा नहीं रखें और दूसरी, किसी भी हालत में मोटरसाइकिल का साइलेंसर खोलकर प्रचार नहीं करें। शंकर यादव ने कहा कि विपक्षी दल, विशेष रूप से बीजेपी, साजिश के तहत हरे गमछे का गलत उपयोग कर आरजेडी कार्यकर्ताओं को बदनाम करने की कोशिश कर सकते हैं। मैं नहीं चाहता कि मेरे किसी कार्यकर्ता पर बीजेपी के लोग किसी भी तरह की आरोप लगाएं। जनता के बीच आरजेडी और महागठबंधन की नीतियों को सकारात्मक संदेश के रूप में पहुंचाएं। किसी भी उकसावे या विवाद से बचें। यदि कोई कार्यकर्ता साइलेंसर खोलकर बाइक चलाते मिला तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह चुनाव जनता की आवाज बनाम झूठे प्रचार की है। पारू विधानसभा क्षेत्र में 42 पंचायत के लोग शामिल जिले के पश्चिमी हिस्से में स्थित पारू विधानसभा क्षेत्र 42 पंचायतों से मिलकर बना है, जिनमें पारू की 12 और सरैया प्रखंड की 30 पंचायतें शामिल हैं। यह क्षेत्र आबादी के लिहाज से जिले में छठे और मतदाताओं की संख्या के आधार पर चौथे स्थान पर है। यहां कुल 3 लाख 11 हजार मतदाता हैं। जिनमें पुरुष 1.64 लाख और महिला मतदाता 1.46 लाख हैं। पिछले विधानसभा चुनाव 2020 में यहां 60.11 प्रतिशत मतदान हुआ था, जिसमें महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से 10.77 प्रतिशत अधिक रही थी। पुरुषों का मतदान प्रतिशत 55 था, जबकि महिलाओं का 65.77 प्रतिशत रहा। इससे यह स्पष्ट होता है कि पारू विधानसभा के चुनाव परिणाम में महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाती हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक सफर पारू विधानसभा का राजनीतिक इतिहास काफी समृद्ध रहा है। स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव में यह क्षेत्र दो हिस्सों में विभाजित था। पारू उत्तरी और पारू दक्षिणी। 1952 में पारू उत्तरी से कांग्रेस के हरिहर शरण दास और दक्षिणी से कांग्रेस के नवल किशोर प्रसाद सिन्हा विजयी हुए थे। 1957 के चुनाव में उत्तरी सीट से एनएनसी के चंदू राम और दक्षिणी सीट से कांग्रेस के नवल किशोर प्रसाद सिन्हा ने जीत दर्ज की। 1962 के बाद दोनों हिस्सों को मिलाकर एकीकृत पारू विधानसभा बना दी गई। 1969 में इस सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया था, लेकिन उसी वर्ष इसे फिर से सामान्य सीट का दर्जा मिल गया। इस सीट पर जैतपुर स्टेट परिवार का भी लंबे समय तक प्रभाव रहा। वीरेंद्र कुमार सिंह ने तीन बार (1969, 1972, 1990) प्रतिनिधित्व किया, जबकि उषा सिन्हा 1985 में विधायक बनीं। बाद में इसी परिवार के अनुनय कुमार सिन्हा ने 2010 और 2020 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2020 में तो उनकी जमानत भी जब्त हो गई। भाजपा का गढ़ बना पारू बीते दो दशकों से पारू विधानसभा भाजपा का मजबूत गढ़ बना हुआ है। भाजपा के अशोक कुमार सिंह 2005 (अक्टूबर) के चुनाव में पहली बार यहां से जीते थे और उसके बाद लगातार 2010, 2015 और 2020 में भी विजयी रहे। अब वे लगातार 5वीं बार चुनावी मैदान में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरे हैं। राजद के मिथिलेश प्रसाद यादव इस सीट से तीन बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने 2015 में अपने भतीजे शंकर प्रसाद यादव को राजद के टिकट पर मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 2020 के चुनाव में जब कांग्रेस गठबंधन को पारू सीट दी गई, तब मिथिलेश यादव निर्दलीय के रूप में उतरे। मगर भाजपा उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह को हार नहीं दिला सके। वर्तमान चुनावी समीकरण 2025 के विधानसभा चुनाव में पारू में मुकाबला रोचक और सीधा भाजपा बनाम महागठबंधन के बीच दिखाई दे रहा है। एक ओर भाजपा के वरिष्ठ विधायक अशोक कुमार सिंह निर्दलीय मैदान में है तो दूसरी ओर महागठबंधन के प्रत्याशी शंकर प्रसाद यादव पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतर चुके हैं।
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