42 वर्षों से गुमनामी में जिला आयुष केंद्र
भास्कर न्यूज । खगड़िया जिले के सूर्य मंदिर चौक स्थित जिला आयुर्वेद देसी संयुक्त औषधालय केंद्र बीते 42 वर्षों से बदहाली और गुमनामी का शिकार है। आश्चर्य की बात यह है कि आज भी अधिकतर लोगों को इस केंद्र के अस्तित्व तक की जानकारी नहीं है। यह केंद्र वर्षों से एक जर्जर निजी भवन में संचालित हो रहा है, जिसकी दीवारें और छत अब जिंदगी के लिए खतरा बन चुकी हैं। छोटे-छोटे 5 फीट के कमरों में जहां एक तरफ दवाओं की अलमारी, वहीं दूसरी ओर एक छोटी सी टेबल पर चिकित्सक इलाज करते हैं। प्रशासनिक उपेक्षा का आलम यह है कि यहां कार्यरत एक यूनानी चिकित्सक को बरामदे पर बैठकर इलाज करना पड़ रहा है। तीन पद्धतियों में इलाज, लेकिन डॉक्टर नहीं यह केंद्र एक साथ आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी पद्धतियों से मरीजों का इलाज करता है। लेकिन बीते दो वर्षों से आयुर्वेद के चिकित्सक अनुपस्थित हैं। फिलहाल, होम्योपैथी में एक और यूनानी में दो चिकित्सक कार्यरत हैं। जबकि चिकित्सकों के लिए केवल तीन कमरे ही उपलब्ध हैं, जिनमें से एक ऑपरेटर रूम और एक स्टोर रूम के रूप में इस्तेमाल होता है। नतीजतन, एक डॉक्टर को खुली जगह पर मरीजों को देखना पड़ता है। कोरोना काल में दिखाई थी आयुष ने अपनी ताकत कोरोना महामारी के दौरान जब देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई थी, तब आयुष चिकित्सा ने लाखों लोगों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई। केंद्र और राज्य सरकारों ने इसके बाद आयुष को बढ़ावा देने की बात तो की, लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है। प्रधानमंत्री की आयुष को लेकर मुहिम भी जिले में सिर्फ कागज़ों तक सीमित है। बीते वर्ष जिले में 42 आयुष चिकित्सकों की अनुबंध पर बहाली जरूर की गई, लेकिन इस अस्पताल में दो साल से एक भी आयुर्वेद चिकित्सक नहीं है। यह अस्पताल कागजों पर तो चालू है, मगर हकीकत में वेंटिलेटर पर है। दवाएं डॉक्टर मिलाएं, पर्ची डॉक्टर काटें, ना कोई सहायक, ना ऑपरेटर यहां कर्मचारियों का भी घोर अभाव है। दवा वितरण से लेकर साफ-सफाई और मरीजों का पंजीकरण तक का काम डॉक्टरों को खुद करना पड़ रहा है। पहले यहां एक कंप्यूटर ऑपरेटर बहाल किया गया था, जिससे मरीजों की पर्चियां ऑनलाइन बनती थीं। लेकिन वेतन न मिलने के कारण वह नौकरी छोड़ चुका है। अब डॉक्टर ही फिर से रजिस्टर में हाथ से नाम दर्ज कर रहे हैं। केंद्र को कम से कम चार चतुर्थ वर्गीय और चार थर्ड ग्रेड कर्मियों की आवश्यकता है, ताकि दवा वितरण, फाइल प्रबंधन, साफ-सफाई और ऑफिस संचालन ठीक से हो सके। फाइलों में सक्रिय, ज़मीन पर निष्क्रिय कब जागेगा स्वास्थ्य महकमा? 42 साल पुराने इस केंद्र की हालत यह है कि इलाज करने की जगह नहीं, डॉक्टरों के बैठने की जगह नहीं, स्टाफ नहीं, और जो हैं, उन्हें भी मूलभूत संसाधन नहीं। सरकार आयुष को बढ़ावा देने के लाख दावे करती है, लेकिन जिले की जमीनी सच्चाई किसी कड़वी हकीकत से कम नहीं। इलाज करते होम्योंपैथ चिकित्सक सुनील।
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