मुस्लिम महिला छठ पूजा के लिए बना रही चूल्हा:किशनगंज में 20 साल से आस्था के पर्व में हो रहीं शामिल, कारीगर बोली-सफाई का रखती हूं खास ध्यान
20 साल से मैं छठ पूजा के लिए मिट्टी का चूल्हा बना रही हूं। ढाई सौ रुपए में एक चूल्हा बेचती हूं। नहाए खाए के दिन से बड़ी संख्या में लोग चूल्हा ले जाते हैं। मुझे इस काम में बड़ा सुकून मिलता है। मैं मुस्लिम हूं, इसके बावजूद छठ व्रती मेरे यहां से चूल्हे ले जाती हैं। यहां के लोग हिंदू-मुस्लिम नहीं मानते हैं। वो खुशी से आशीर्वाद देते हुए मेरे से चूल्हा ले जाते हैं। यह कहना है छठ पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हे बनाने वाली किशनगंज की महिला का... बिहार में गांव हो या शहर, हर जगह छठ पूजा की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। युवक घाट बनाने में लगे हैं तो महिलाएं मिट्टी का चूल्हा बनाने में जुटी हैं। छठ पर्व के लिए मिट्टी के चूल्हे का बड़ा महत्व है। इसे पूरी पवित्रता के साथ तैयार किया जाता है। गांव की महिलाएं स्नान के बाद चूल्हा के लिए मिट्टी लाने जाती हैं। मिट्टी को पानी मिलाकर अच्छी तरह गूंथा जाता है। इसके बाद गेहूं का भूसा मिलाकर चूल्हा तैयार किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है। व्रती महिलाएं इसी चूल्हे पर प्रसाद बनाती हैं। भास्कर के स्पेशल रिपोर्ट में जानिए कि मुस्लिम महिलाएं किन सावधानियों के साथ मिट्टी का चूल्हा तैयार करती हैं और इसकी कीमत दिन प्रतिदिन क्यों बढ़ती जा रही है। छठ पूजा की तैयारियों के बीच किशनगंज जिले में उत्साह चरम पर है। इस पवित्र पर्व में हिंदू समुदाय के साथ-साथ मुस्लिम महिलाएं भी अपनी अनूठी भागीदारी निभा रही हैं। छठ पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हे तैयार करना इनके लिए अब परंपरा बन चुका है। श्रद्धा और शुद्धता से बनाए गए ये चूल्हे न केवल पूजा की पवित्रता बनाए रखते हैं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता का जीवंत उदाहरण भी हैं। किशनगंज की मुस्लिम महिलाएं पिछले 20 सालों से यह काम करती आ रही हैं। उनके लिए यह केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि सेवा और आस्था का प्रतीक भी है। मिट्टी गूंधने से लेकर चूल्हे को आकार देने तक हर कदम पर शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। किशनगंज शहर के खगड़ा की रहने वाली रखमां बताती हैं, 'हमारे लिए यह काम सिर्फ रोजगार नहीं है, बल्कि छठ पूजा की पवित्रता में योगदान देने का मौका है। हम इसे पूरे मन से करते हैं।' मुस्लिम महिलाएं बनाती हैं छठ पर्व के लिए चूल्हे एक चूल्हा बनाने में करीब 1 घंटा लगता है। इसे सूखने में 2 दिन लगते हैं। मिट्टी के चूल्हे हिन्दू ही नहीं, मुस्लिम महिलाएं भी बनाती हैं। छठ महापर्व की महिमा ऐसी है कि मुसलमान महिलाएं भी मिट्टी के चूल्हे बनाने के दौरान पूरी पवित्रता बरतती हैं। छठ पूजा के करीब के दिनों में मांस-मछली का सेवन नहीं करतीं। चूल्हा बनाते समय सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। इसे बनाने के दौरान महिलाएं चप्पल-जूते नहीं पहनतीं। पटना के वीरचंद पटेल मार्ग पर लंबे समय से मिट्टी के चूल्हे बनाए जा रहे हैं। छठ के दिनों में इन्हें फुटपाथ पर सूखते देखा जा सकता है। स्थानीय लोग कहते हैं कि यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और यह सामाजिक सौहार्द और धार्मिक समरसता को मजबूत करती है। इस पहल से न केवल महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण हो रहा है, बल्कि सामुदायिक एकता भी मज़बूत हो रही है। छठ पूजा के इस पावन अवसर पर मुस्लिम महिलाओं का योगदान बिहार की सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का प्रतीक बन गया है। छठ महापर्व की खास तारीखें 25 अक्टूबर 2025 को नहाय खाय: नहाय खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत होती है। व्रति महिलाएं नहाकर लौकी की सब्जी और भात का सेवन करती हैं। 26 अक्टूबर 2025 खरना: व्रति महिलाएं खरना करती हैं। दिनभर उपवास के बाद शाम को खरना का प्रसाद बनाती हैं। पूजा के बाद उसका सेवन करती हैं। 27 अक्टूबर 2025 डूबते सूर्य की पूजा: नदी, पोखर और अन्य जल स्रोत में खड़ी होकर महिलाएं डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। 28 अक्टूबर 2025 उगते सूर्य की पूजा: महिलाएं अर्घ्य देकर उगते सूर्य की पूजा करती हैं। इसके साथ ही छठ महापर्व का समापन होता है। कैसे शुरू हुई थी छठ पूजा? छठ पूजा कैसे शुरू हुई, इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तब रावण के वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया था। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को बुलाया था। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया था। माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। खास होता है छठ का प्रसाद छठ के प्रसाद खास होते हैं। छठ पूजा की शुरुआत व्रति महिलाएं लौकी की सब्जी और भात का सेवन कर करती हैं। यह भोजन शरीर को व्रत के अनुकूल करता है। इसके बाद खरना के प्रसाद के रूप में खीर गन्ने के रस व गुड़ से तैयार की जाती है। छठ में बनाए जाने वाले अधिकतर प्रसाद में कैल्शियम भारी मात्रा मौजूद होती है। भूखे रहने के दौरान या उपवास की स्थिति में इंसान का शरीर नैचुरल कैल्शियम का ज्यादा इस्तेमाल करता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय धूप लगने से शरीर में विटामिन-डी बनता है। अदरक व गुड़ खाकर पर्व समाप्त किया जाता है। साइंस के अनुसार उपवास के बाद भारी भोजन हानिकारक है।
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