CM फेस पर अड़ी कांग्रेस का 10 दिन में सरेंडर:तेजस्वी ने बातचीत बंद की, लालू के कमरे में अल्लावरू की नो एंट्री; गहलोत ने कैसे सुलझाया

Oct 23, 2025 - 16:30
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CM फेस पर अड़ी कांग्रेस का 10 दिन में सरेंडर:तेजस्वी ने बातचीत बंद की, लालू के कमरे में अल्लावरू की नो एंट्री; गहलोत ने कैसे सुलझाया
तारीख: 10 अक्टूबर 2025 पटना में बिगड़ी बात फर्स्ट फेज के नॉमिनेशन की अधिसूचना जारी हो गई थी। इस बीच तेजस्वी यादव के सरकारी आवास पर महागठबंधन के नेताओं की बैठक बुलाई गई। इसमें सीट शेयरिंग से लेकर CM फेस तक फैसला होना था। चर्चा के मुताबिक लेफ्ट की पार्टियों ने RJD का फैसला स्वीकार लिया, लेकिन कांग्रेस अपने जिद पर अड़ गई। तेजस्वी कांग्रेस को 55 सीट देना चाहते थे, कांग्रेस कम से कम 61 सीट पर लड़ना चाहती थी। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु किसी भी सूरत में पीछे हटने पर राजी नहीं हुए। तारीख: 13 अक्टूबर 2025 दिल्ली में भी नहीं सुलझी गठबंधन की गांठ ​अब दूसरे चरण के नॉमिनेशन की अधिसूचना भी जारी हो गई थी। पटना से मामला अब दिल्ली पहुंच गया था। तेजस्वी यादव अपने पिता के साथ दिल्ली में थे। वे वहां राहुल गांधी के साथ मिलकर गठबंधन में बिगड़ी बात को सुलझाना चाहते थे। सूत्रों की माने तो यहां राहुल गांधी ने भी सीधे तेजस्वी से मिलने से इनकार कर दिया। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल से मिले, लेकिन मामला यहां भी हल नहीं हुआ। तारीख: 13 अक्टूबर 2025 सिंबल बांटने के कारण बातचीत पर लगा ब्रेक दिल्ली से लौटते ही लालू प्रसाद यादव आरजेडी के नेताओं के बीच अपना सिंबल बांटने लगे। सिंबल बांटते उनकी तस्वीर वायरल होने लगी। 6 से ज्यादा प्रत्याशियों को वे टिकट बांट दिए थे। ये बिल्कुल वैसा ही हो रहा था जैसा लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने किया था। पहले सिंबल बांट दिया उसके बाद सीट बंटवारा किया गया। हालांकि दिल्ली से लौटते ही तेजस्वी ने इस पर ब्रेक लगाया। जिन्हें सिंबल मिला था उन्हें सिंबल लौटाना पड़ा। अब मामला इतना बिगड़ गया था कि महागठबंधन की सभी पार्टियां बिना घोषणा के अपना-अपना सिंबल बांटने लगी थीं। अब जानिए, लालू की शर्त पर गहलोत कैसे माने कांग्रेस सूत्रों की माने तो तेजस्वी और अल्लावरु के बीच तनातनी इतनी बढ़ गई थी कि कोई पीछे हटने के लिए राजी ही नहीं हो रहा था। दोनों के बीच बातचीत पर ब्रेक लग गया था। इस बीच तेजस्वी यादव ने अपना दबदबा दिखाते हुए अपनी पार्टी के 143 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए यानी जो चर्चा थी कि राजद 135 पर लड़ेगा उस पर विराम लगा दिया। तनातनी में कांग्रेस ने भी अपनी पसंद की 61 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए। इसके बाद तेजस्वी सीधे अड़ गए कि जब तक उन्हें सीएम फेस घोषित नहीं किया जाएगा, कांग्रेस से कोई बातचीत नहीं होगी। लालू के कमरे में अल्लावरु की नो एंट्री, सिर्फ गहलोत से बात अशोक गहलोत बुधवार को प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के साथ पहले तेजस्वी के सरकारी आवास पर पहुंचे। यहां दोनों के बीच लगभग एक घंटे तक बातचीत हुई। यहां से निकलने के बाद गहलोत लालू प्रसाद यादव से मिलने के लिए राबड़ी आवास पहुंचे। इस बातचीत से अल्लवारु को दूर रखा गया। सूत्रों के अनुसार लालू ने भी सीधी शर्त यही रखी की तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करो। गठबंधन को आगे बनाए रखने के लिए गहलोत ने शर्त को स्वीकार किया। इसके बाद ही तेजस्वी यादव की तरफ से फोटो जारी कर इस बात का मैसेज दिया गया कि गहलोत और लालू ने सभी बातों पर समहति बन गई है। आखिर में कांग्रेस अपने फैसले को पलटने के लिए मजबूर हुई और न केवल तेजस्वी यादव को महागठबंधन का चेहरा मानी, बल्कि उनके करीबी और बिना एक भी विधायक वाले मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का फेस स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब 4 पॉइंट में समझिए, इस फैसले के मायने 1. वोटिंग से पहले NDA पर हावी होगा महागठबंधन चुनाव में मात्र 13 दिन से कम का समय बचा था। एनडीए के सभी बड़े नेता फील्ड में उतर गए थे। सीएम रोज 3-4 सभाएं कर रहे। बीजेपी की टॉप लीडरशिप भी बिहार में कैंप करने लगी है। जबकि महागठबंधन की तरफ से अभी तक एक भी नेता ग्राउंड पर नहीं पहुंचा। खींचतान के कारण ये मैसेज जा रहा था कि महागठबंधन में सबकुछ सही नहीं है। वे लगातार ये नरेटिव सेट कर रहे थे कि महागठबंधन के भीतर सिर फुटौव्वल की स्थिति है। इसका सीधा नुकसान महागठबंधन को हो रहा है। अब जब महागठबंधन के भीतर सबकुछ सही हो गया है तो तेजस्वी यादव के साथ कांग्रेस के नेता ने भी NDA से सीधा सवाल पूछा है कि महागठबंधन के पास तो चेहरा है, क्या BJP ये बताएगी कि क्या चुनाव के बाद नीतीश कुमार ही CM होंगे। यानि NDA की नरेटिव के आगे अब तेजस्वी ने अपना नरेटिव सेट कर दिया है। 2. तेजस्वी ही बॉस, कहीं कोई संदेह नहीं इस एक फैसले से 3 मैसेज देने की कोशिश की गई है… दरअसल, तेजस्वी यादव इस बार किसी भी सूरत में वोटों का बिखराव नहीं चाहते हैं। सीनियर जर्नलिस्ट अरविंद मोहन बताते हैं, ये बात तेजस्वी यादव भी अच्छे से जानते हैं कि कांग्रेस के हिस्से में जो सीटें दी गई हैं, उन सीटों को जीत पाना उनके लिए आसान नहीं है। कांग्रेस को बिहार में अपनी जमीन का भी पता है। ऐसे में दोनों एक दूसरे के लिए जरूरी हैं। अगर जमीन पर गठबंधन में तालमेल नहीं होने का मैसेज जाता तो दोनों पार्टियों को अपने वोटर्स को अपने पाले में टर्न करा पाना मुश्किल हो जाता। अगर वोटों का बिखराव होता तो सबसे ज्यादा नुकसान तेजस्वी को होता। 3. कांग्रेस की केवल किरकिरी हुई, जिद के कारण अच्छी सीटें भी खोईं कांग्रेस को करीब से जानने वाले सीनियर जर्नलिस्ट आदेश रावल कहते हैं, ये पूरा ड्रामा कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु की तरफ से रचा गया । अल्लावरु चाहते थे कि वे बिना CM फेस के ही चुनाव में जाएं, ताकि उन्हें चुनाव के बाद इसका लाभ मिल जाए। चुनाव के बाद गठबंधन की जीत होने की स्थिति में बारगेन करना चाहते थे। इसके लिए अल्लावरु कांग्रेस की तरफ से कराई गई एक सर्वे का हवाला देते रहे, जिसमें ये बात निकल कर सामने आ रही थी कि गैर यादव OBC और EBC कांग्रेस को अपना समर्थन दे सकती है, अगर महागठबंधन बिना फेस के चुनाव में जाता है तो।’ रावल कहते हैं, कांग्रेस जब भी गठबंधन में सीटों पर चर्चा करने के लिए जाती तो तेजस्वी की तरफ से CM फेस पर ही बात करने का प्रस्ताव रखा जाता। ऐसे में कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि वे अपनी 4-5 अच्छी सीट गंवा दी, वहां फ्रेंडली फाइट की स्थिति बन गई। 4. OBC-EBC के समीकरण के लिए तेजस्वी के लिए सहनी जरूरी मुकेश सहनी जुलाई से ही इस बात को दोहरा रहे हैं कि इस बार पिछड़ा का बेटा सीएम और अति पिछड़ा का बेटा यानि कि वे डिप्टी सीएम बनेंगे। वे 60 सीट पर लड़ना चाहते थे लेकिन महागठबंधन की तरफ से 15 सीटें दी गई, इसके बाद भी वे मान गए क्योंकि डिप्टी सीएम का पद उन्हें दिया गया। तेजस्वी यादव इस बात को अच्छे से समझते हैं कि OBC का एक बड़ा चंक उनके साथ है। अब वे NDA के कोर वोट बैंक गैर यादव OBC और EBC में सेंधमारी करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा दांव कुशवाहा पर और मुकेश सहनी पर लगाया है। इस चुनाव में यादव और मुस्लिम के बाद राजद ने सबसे ज्यादा 16 टिकट कुशवाहा जाति के कैंडिडेट को दिए हैं। दरभंगा, खगड़िया, मुजफ्फरपुर, सहरसा और खगड़िया की 40-42 सीटें ऐसी हैं जिस पर निषाद जाति का सीधा प्रभाव है। भले सहनी पिछले चुनाव 11 सीटों पर लड़कर मात्र 4 सीट जीतने में सफल रहे थे लेकिन इन इलाकों में NDA को जीत दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही थी।

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