सीतामढ़ी के मुशहरी गांव में 50 साल से पुल अधूरा:बागमती नदी पार करने को ग्रामीण नाव पर निर्भर, 7KM दूरी करनी पड़ती है तय
सीतामढ़ी के परसौनी प्रखंड की देमा पंचायत के मुशहरी गांव में बागमती नदी पर पुल का निर्माण पिछले 50 वर्षों से अधूरा है। ग्रामीणों को आज भी पुल बनने का इंतजार है। नदी पर पुल न होने के कारण गांव के लोग नाव के सहारे आवाजाही करते हैं। बारिश और बाढ़ के दिनों में यह आवाजाही जानलेवा साबित होता है। ग्रामीणों के अनुसार, पुल निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण की कोई समस्या नहीं है। प्रस्तावित स्थल पर लोक निर्माण विभाग की जमीन पहले से ही उपलब्ध है। इसके बावजूद सरकार और संबंधित विभागों की उदासीनता के चलते निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। वर्ष 2023 में यह मामला संसद में भी उठाया गया था, जिससे ग्रामीणों में उम्मीद जगी थी, लेकिन अब वह उम्मीद भी फीकी पड़ती जा रही है। गर्भवती महिलाओं को नाव पर ही प्रसव कराना पड़ा स्थानीय निवासी कुंती देवी और बुधिया देवी ने बताया कि कई बार गर्भवती महिलाओं को नाव पर ही प्रसव कराना पड़ा है। अस्पताल पहुंचने से पहले कई मरीजों की मौत हो चुकी है। नाव दुर्घटनाएं यहां आम बात हैं। बरसात के मौसम में नदी पार करना ग्रामीणों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाता है। दो सौ घरों में एक हजार से अधिक लोग करते हैं निवास मुशहरी गांव और आसपास के दलित टोलों में लगभग दो सौ घरों में एक हजार से अधिक लोग निवास करते हैं। नदी में साल भर पानी रहने के कारण गांव दो हिस्सों में बंटा रहता है। ग्रामीण कभी-कभार चचरी पुल बनाते हैं, लेकिन बाढ़ आने पर वह बह जाता है। वर्ष 2020-21 के आम बजट सत्र में सड़क और पुल निर्माण की घोषणा की गई थी, जिससे लोगों में उम्मीद जगी थी, लेकिन यह घोषणा आज तक पूरी नहीं हो सकी है। एक बोर्ड लगाए जाने से ग्रामीणों में नाराजगी और बढ़ गई ग्रामीण केशव कुमार और सतीश कुमार के अनुसार, सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि वर्षों से केवल आश्वासन देते आ रहे हैं। हाल ही में सांसद प्रतिनिधि द्वारा केवल एक बोर्ड लगाए जाने से ग्रामीणों में नाराजगी और बढ़ गई है। दो किलोमीटर की दूरी सात किलोमीटर में तय करनी पड़ती है ग्रामीणों का मानना है कि पुल बन जाने से देमा, मुशहरी के साथ-साथ रिगा, डुमरा, बेलसंड और शिवहर के कई प्रखंड सीधे जुड़ जाएंगे। अभी दो किलोमीटर की दूरी सात किलोमीटर में तय करनी पड़ती है। शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास की राह इस पुल के अभाव में आज भी रुकी हुई है। ग्रामीणों की साफ मांग है—अब वादे नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई हो, ताकि 50 साल से अधूरा ‘उम्मीद का पुल’ हकीकत बन सके।
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