ताप बिजली संयंत्र पर सरकार के जवाब को बताया झूठा:बक्सर से RJD सांसद सुधाकर सिंह बोले - सरकार 2017 की रिपोर्ट से कर रही दावा
बक्सर के चौसा ताप बिजली संयंत्र को लेकर लोकसभा में पूछे गए तारांकित प्रश्न के जवाब पर सियासत तेज हो गई है। बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा दिए गए उत्तर को जमीनी हकीकत से परे बताते हुए इसे किसान, पर्यावरण और लोकतांत्रिक जवाबदेही—तीनों का खुला अपमान करार दिया है। सांसद ने कहा कि सरकार ने एक बार फिर कागजी रिपोर्टों के सहारे जनता को गुमराह करने की कोशिश की है। सांसद सुधाकर सिंह ने कहा कि सरकार का यह दावा कि चौसा ताप बिजली संयंत्र से कृषि भूमि, फसलों, मिट्टी की गुणवत्ता और भू-जल स्तर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है, पूरी तरह से झूठा और वास्तविकता से कोसों दूर है। उन्होंने कहा कि चौसा और आसपास के इलाकों के हजारों किसान आज अपनी आंखों से देख रहे हैं कि खेतों पर फ्लाई ऐश की परत जम रही है, फसलें कमजोर हो रही हैं और हैंडपंप व सिंचाई के साधन लगातार सूखते जा रहे हैं। ऐसे में दिल्ली में बैठकर बनाई गई रिपोर्टें किसानों के अनुभवों से बड़ी कैसे हो सकती हैं? बिजली संयंत्र की पहली इकाई का संचालन अगस्त 2025 में शुरू हुआ सांसद ने सरकार के उत्तर पर सवाल उठाते हुए कहा कि मंत्री का पूरा जवाब वर्ष 2017 की पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट पर आधारित है, जबकि चौसा ताप बिजली संयंत्र की पहली इकाई का संचालन अगस्त 2025 में शुरू हुआ है। यानी सरकार आज भी आठ साल पुरानी रिपोर्टों के आधार पर यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि सब कुछ सुरक्षित है। उन्होंने इसे गैर-जिम्मेदाराना और सच्चाई से मुंह मोड़ने वाला रवैया बताया। सरकार का चुप रहना उसकी नीयत पर सवाल खड़े करता है - सुधाकर सिंह सुधाकर सिंह ने कहा कि सरकार ने फ्लाई ऐश के 100 प्रतिशत उपयोग, जीरो लिक्विड डिस्चार्ज और मॉडर्न प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था के जो दावे किए हैं, वे जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं देते। यदि सब कुछ इतना ही आदर्श है, तो गांवों में उड़ती राख क्यों फैल रही है और खेतों में धूल की मोटी परत क्यों जम रही है? इन सवालों पर सरकार का चुप रहना उसकी नीयत पर सवाल खड़े करता है। 'सरकार के लिए किसान सिर्फ आंकड़े' उन्होंने यह भी कहा कि किसानों की चिंताओं को “कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं” कहकर खारिज करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह भाषा दर्शाती है कि सरकार के लिए किसान सिर्फ आंकड़े हैं, जिनकी पीड़ा को रिपोर्ट की एक पंक्ति में खत्म किया जा सकता है। अंत में सांसद ने मांग की कि यदि सरकार वास्तव में ईमानदार है, तो संयंत्र के संचालन के बाद एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और सार्वजनिक पर्यावरणीय अध्ययन कराया जाए और उसकी रिपोर्ट जनता के सामने रखी जाए। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक यह माना जाएगा कि सरकार जानबूझकर बक्सर और चौसा के लोगों की आवाज़ दबा रही है।
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