जापान में भी गूंज उठा हर-हर महादेव का नारा:बेगूसराय के भक्तों ने निकाली कांवर यात्रा, कहा- परंपरा को जिंदा रखने की कोशिश की
बिहार के लोग सिर्फ देश ही नहीं, जापान की धरती पर भी भारतीय संस्कृति का परचम लहरा रहे हैं। अभी जब सावन का महीना चल रहा है, तो वहां भी कांवड़ यात्रा निकाली जा रही है। अंतिम सोमवारी पर जापान में इस यात्रा का आयोजन बिहार फाउंडेशन के सचिव बेगूसराय के रहने वाले विकास रंजन के नेतृत्व में किया गया। विकास रंजन ने बताया कि प्रवासी भारतीयों के बीच अपनी जड़ों से जुड़े रहने और परंपराओं को सजीव बनाए रखने का प्रयास सालों से हो रहा है। उसी का एक जीवंत उदाहरण कांवड़ यात्रा है। जिसे बिहार-झारखंड के प्रवासी जन पिछले चार सालों से न केवल सहेज रहे हैं, बल्कि उसे और भव्य रूप प्रदान कर रहे हैं। गंगाजल लाकर भोलेनाथ का जलाभिषेक भक्तों ने बताया कि भारत में कांवड़ यात्रा का एक विशेष धार्मिक महत्व है। सावन महीने में श्रद्धालु गंगाजल लाकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। यही परंपरा जापान में प्रवास कर रहे हम भारतीयों ने भी अपनाई है। यह पहल न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि प्रवासी समाज की सांस्कृतिक एकता का संदेश भी देती है। जापान में कांवड़ यात्रा का शुभारंभ साल 2022 में हुआ था। आज यह आयोजन प्रवासी समाज के बीच एक बड़े उत्सव का रूप ले चुका है। इस साल की चौथी कांवड़ यात्रा फ़ुनाबोरी (Funabori) से आरंभ हुई। श्रद्धालुओं ने गंगाजल से भरा कांवड़ को कंधों पर उठा कर हर-हर महादेव के जयघोष के साथ पैदल ओजिमा (Ojima) तक यात्रा की। भव्य आरती के साथ यात्रा का समापन वाहनों के माध्यम से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी तय कर इबाराकी प्रांत स्थित राम मंदिर बांदो पहुंचे। मंदिर में भोले बाबा का जलाभिषेक, श्रृंगार और भव्य आरती के साथ इस यात्रा का समापन हुआ। इस अद्भुत क्षण ने हम सभी श्रद्धालुओं को गहरी आध्यात्मिक अनुभूति दी। भक्ति, उत्साह और एकता के संगम इस यात्रा के दौरान प्रवासियों का उत्साह देखने लायक था। पारंपरिक परिधानों में सजे कांवड़िये पूरे जोश के साथ बम-बम भोले, हर-हर महादेव, बोल कांवरिया बोल बम का जयघोष करते रहे। न केवल पुरुष, बल्कि महिलाएं और बच्चे भी सक्रिय रूप से शामिल हुए। जिसने सामुदायिक उत्सव का रूप दिया। श्रद्धालुओं ने इसे केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जुड़ाव का माध्यम माना है। विकास ने फोन पर बताया कि यह यात्रा हमें अपनी मिट्टी, अपनी परंपराओं और अपनी आस्था से जोड़ने का काम करती है। यह यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह प्रवासी समाज की एकता, अपनी संस्कृति के प्रति सम्मान और अगली पीढ़ी तक अपनी परंपराओं को पहुंचाने का प्रयास भी है।
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