नालंदा के चोरसुआ पंचायत में 20,000 दीपों से जगमगाती परंपरा:छठ व्रतियों के स्वागत को 10 साल से किया जा रहा इवेंट;600 किलो तेल की 'नीड'
नालंदा के गिरियक प्रखंड अंतर्गत चोरसुआ पंचायत में छठ महापर्व की एक अनूठी परंपरा पिछले 10 वर्षों से निभाई जा रही है,ये परंपरा न केवल श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामूहिक भागीदारी और सांस्कृतिक एकता का उदाहरण भी है। उगते सूर्य को अर्घ्य से पहले रोशन होता है पूरी पंचायत उगते सूरज को अर्घ्य देने से पूर्व त्रिवेणी धाम छठ पूजा समिति के तत्वावधान में पूरी पंचायत को दीपमालिका से सजाया जाता है। पंचायत की हर गली-कूचे में लगभग 20 हजार दीप एक साथ प्रज्वलित किए जाते हैं, जो छठव्रतियों और श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए एक दिव्य वातावरण का निर्माण करते हैं। इस भव्य आयोजन में करीब 600 किलोग्राम तेल की खपत होती है। उल्लेखनीय बात यह है कि इस पूरे खर्च को पूजा समिति के सदस्य स्वेच्छा से वहन करते हैं। यह सामूहिक प्रयास पंचायत में सामाजिक सद्भाव और धार्मिक समरसता को दर्शाता है। दीपों की श्रृंखला छठव्रतियों के मन में करती है उत्साह का संचार चोरसुआ पंचायत के मुखिया चंदन कुमार ने इस परंपरा के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि, इस पवित्र कार्य में पूरे पंचायत के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। छठी मैया के स्वागत में दीप जलाने की यह परंपरा पूरे क्षेत्र को छठमय कर देती है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक आस्था और एकजुटता का प्रतीक है। उन्होंने आगे बताया कि दीपों की यह अटूट श्रृंखला न केवल पंचायत को प्रकाशमान करती है, बल्कि छठव्रतियों के मन में भी अपार श्रद्धा और उत्साह का संचार करती है। स्वच्छता,लाइट और सेफ्टी के स्पेशल अरेंजमेंट तीन नदियों के उद्गम स्थल त्रिवेणी घाट पर भी छठ पूजा समिति ने व्यापक प्रबंध किए हैं। यहां आसपास की पंचायतों के अलावा बिहार शरीफ से भी बड़ी संख्या में छठव्रती और श्रद्धालु पहुंचे हुए हैं। घाट पर स्वच्छता, प्रकाश व्यवस्था और सुरक्षा के विशेष इंतजाम हैं। त्रिवेणी घाट की पवित्रता और यहां की धार्मिक मान्यता के कारण यह स्थल छठ पर्व के दौरान विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाता है। पांच वर्षों से जारी है यह अनूठी परंपरा यह उल्लेखनीय है कि चोरसुआ पंचायत में दीप प्रज्वलन की यह अनूठी परंपरा पिछले पांच वर्षों से निरंतर जारी है। हर साल इस परंपरा में नई ऊर्जा और उत्साह देखने को मिलता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पंचायत की पहचान भी बन गई है।
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