जीतनराम मांझी के सीएम बनने पर गांव को मिला अस्पताल-थाना:बुजुर्ग बोले- 15 साल पहले हॉस्पिटल जाने का मतलब मौत से जंग; अब लोगों के पास रोजगार
गयाजी में खिजरसराय प्रखंड से आगे बढ़ते ही एक पक्की सड़क मुड़कर जाती है। यही रास्ता सीधे केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के गांव महकार तक ले जाता है। यहां एक साफ-सुथरी सड़क दिखाई देती है। दोनों ओर पक्के घरों की कतारें, बिजली के पोलों पर जलती लाइटें, और बीचोंबीच एक बड़ा भवन है। गांव के बीच के इस भवन को महकार का गौरव कहते हैं। ये केंद्रीय मंत्री का पुराना घर है। जहां कभी मिट्टी का चूल्हा जलता था और आज पावर ग्रिड की रोशनी फैली है। यह वही गांव है, जहां से बिहार की सियासत में एक आम आदमी मुख्यमंत्री बनकर उभरा। महकार के लोग आज भी गर्व से कहते हैं कि हमारे जीतन बाबू इस गांव के बेटे हैं। उन्होंने गांव को वो सब दिया जो हम कभी सोच भी नहीं सकते थे। गांव की नई पहचान है कि यहां पर 24 घंटे बिजली, स्कूल, अस्पताल और डेयरी तक है। जो लोगों के रोजगार का साधन है। महकार गांव आज विकास की मिसाल बन चुका है। यहां 24 घंटे बिजली रहती है। पावर ग्रिड गांव पास ही है। एक आईटीआई कॉलेज, 10+2 स्कूल, अंबेडकर छात्रावास, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, और यहां तक कि मवेशी अस्पताल तक की सुविधा है। पहले ये सब नहीं था। गांव के किनारे पर सुधा डेयरी का शीत गृह बना है, जिसने यहां के किसानों और दुग्ध व्यवसायियों के जीवन में नई रोशनी लाई है। पहले दूध बेचने के लिए शहर जाना होता था गांव के बुजुर्ग किसान मिश्री सिंह व मांझी के बचपन के दोस्त बताते हैं कि पहले दूध बेचने के लिए हमें खिजरसराय या गया शहर जाना पड़ता था। अब गांव में ही सुधा का शीतगृह है। दूध ठंडा होता है। बिक्री बढ़ती है, और गांव के लोग रोजगार से जुड़ रहे हैं। यही असली बदलाव है। अब हमें और क्या चाहिए, सबकुछ तो है। महकार गांव में कुल 135 घर हैं। भूमिहार, चंद्रवंशी, पासवान, यादव, मांझी और ब्राह्मण सब साथ रहते हैं। खेतों में लगभग 350 एकड़ जमीन है। गांव में जब लोगों से पूछा गया कि क्या अब भी कुछ कमी है, तो अधिकतर ने मुस्कुराते हुए कहा- अब तो सब है बाबू। बिजली है, पानी है, स्कूल, अस्पताल है। गांव के साथ पूरे क्षेत्र का किया भला जीतन राम मांझी ने गांव को किसी कस्बे जैसा बना दिया है। गांव के कौशिक कुमार, जो युवा वर्ग का चेहरा हैं, कहते हैं कि जीतन राम मांझी ने सिर्फ अपने गांव का नहीं, पूरे क्षेत्र का भला किया है। अतरी विधानसभा में काम हुआ है, उसका असर यहां साफ दिखता है। पुराना घर अब भी मिट्टी से जुड़ा हुआ महकार के बीचोंबीच, सड़क से करीब 100 मीटर की दूरी पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का घर है। पुराना घर अब वजूद में नहीं है, पर कुछ अवशेष अब भी हैं। दीवार का आधा हिस्सा है। एक टूटा हुआ दरवाजा है। मिट्टी का चूल्हा यहां अब भी है। जहां कभी मांझी परिवार की रसोई बसती थी। आज वहां की देखरेख उपेंद्र मांझी उर्फ कारा करते हैं, जो केंद्रीय मंत्री के भांजे हैं। वे अपने परिवार के साथ उसी घर में रहते हैं। उपेंद्र मांझी बताते हैं- जीतन राम मांझी हर 15 दिन में गांव जरूर आते हैं। यहां आराम करते हैं, लोगों से मिलते हैं। उन्होंने कभी गांव से दूरी नहीं बनाई। आज भी पुराने घर में मिट्टी का चूल्हा जलता है। बचपन की यादें अब भी ताजा महकार के बुजुर्ग मिश्री सिंह बताते हैं। मैंने जीतन राम मांझी के साथ पढ़ाई की है। वो बचपन से ही स्वाभिमानी थे, पर घमंडी नहीं थे। राजनीति का गुण उनमें बचपन से था। जब हम गांव में कबड्डी, डोल पता, चिक खेलते थे, तो जीतन हमेशा टीम के लीडर बन जाते थे। सीताराम सिंह उर्फ लाल सिंह पुराने दिनों को याद करते हुए हंस पड़ते हैं। वो कहते है कि हमारी शादी बचपन में ही हो गई थी, और बच्चे भी दो हो गए थे। तब जीतन हमसे मजाक करते थे और कहते थे कि 'मूंछ ना दाढ़ी, दो लड़का के बाप हो गए है। यही है कलयुग का प्रताप। जब हम स्कूल जाते थे, तो जेब में भूंजा लेकर जाते थे। वो हंसते हुए हमारी जेब में हाथ डालते और निकालकर खा जाते थे। हमारे बीच कभी भेदभाव नहीं था। सीताराम सिंह यह भी बताते हैं कि मांझी की दादी काफी सख्त थीं। जब हम पेड़ पर चढ़कर खेलते थे, तो दादी डांट देती थीं- ‘गिर जाओगे तो हाथ पैर टूट जाएंगे। बचपन का वो दौर याद आता है, मगर अब वो दिन कहीं खो गए हैं। गांव की मांग- अब महकार को प्रखंड बनाओ गांव में विकास की रफ्तार से लोग खुश हैं, लेकिन अब एक ही मांग बाकी है। लोगों की मांग है कि महकार को प्रखंड और खिजरसराय को अंचल बनाया जाए। सुनील सिंह पंचायत स्तर पर सक्रिय हैं। ये कहते हैं कि अब हमें दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने चाहिए। प्रखंड या अंचल यहीं बन जाए, तो लोगों को काफी सहूलियत होगी। इस पर जीतन राम ने भी हामी भरी है, बस प्रक्रिया थोड़ी लंबी है। सरकारी मानक और प्रक्रिया की जटिलता के कारण फिलहाल यह मांग अधूरी है, लेकिन ग्रामीणों को विश्वास है कि मांझी इसे भी पूरा करेंगे। नहर में पानी, खेतों में हरियाली महकार की नहर रूद्रस्थान महमूद ब्रांच से जुड़ी है। बरसात में इसमें पानी आता है, बाकी दिनों में सूखी रहती है। फिर भी, किसान इसे जीवनरेखा मानते हैं। उपेंद्र मांझी बताते हैं कि बरसात में जब नहर में पानी आता है, तो खेतों की रौनक लौट आती है। अगर साल भर पानी रहे तो खेती दुगनी हो जाएगी। गांव के आसपास अब भी खेती ही प्रमुख पेशा है। यहां के लोग गेहूं, धान और सब्जियां उगाते हैं। लेकिन युवा रोजगार के लिए बाहर भी जाते हैं। महकार गांव में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है ।गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि15 साल पहले किसी बीमार को अस्पताल ले जाना मतलब मौत से जंग लड़ना पड़ता था। अब गांव में ही इलाज है, एम्बुलेंस आती है, और सड़कें पक्की हैं। लोगों की जुबान पर एक ही बात है कि गांव को पहचान जीतन मांझी ने दी है। पहले नाम पूछने पर लोग सोचते थे कि महकार कहां है, अब लोग जीतन राम मांझी के गांव को जानते हैं। कौशिक कुमार कहते हैं कि हम लोग भी पढ़ाई कर रहे हैं, ताकि कल गांव के लिए कुछ कर सकें। मांझी ने दिखाया कि गरीब घर का बेटा भी बिहार का मुख्यमंत्री बन सकता है। गांव की खेतों में बिजली से चलने वाले पंप लग गए हैं। बच्चों के हाथों में अब किताबें हैं, और युवाओं के सपनों में आईटीआई और नौकरी की चाह है। मिश्री सिंह कहते हैं कि हमारे गांव ने वो दिन भी देखा है जब अंधेरे में दीपक जलाकर खाना बनता था। आज हर घर में बल्ब जलता है। मांझी ने जो किया, वो मिसाल है। नतीजा ये है कि महकार सिर्फ एक गांव नहीं, उम्मीद की कहानी है।
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