बिहार में बीजेपी के लिए बनिया प्रदेश अध्यक्ष जरूरी क्यों:वोट बैंक के बिखराव को रोकना, पिछड़ों को मैसेज, सवर्ण के साथ बैकवर्ड भी जरूरी
20 नवंबर को जब पटना के गांधी मैदान में नीतीश 10वीं बार CM की शपथ ले रहे थे तब उनकी कैबिनेट से मिथिला के 3 बड़े चेहरे बाहर हो गए थे। ये नाम थे नीतीश मिश्रा, जीवेश मिश्रा और ठीक एक साल पहले मंत्री बनने वाले संजय सरावगी। चौंकाने वाली बात ये थी कि शपथ लेने वाले मंत्रियों की लिस्ट में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल का नाम शामिल था। इसके बाद ये तय माना जा रहा था कि लगातार 4 टर्म से पिछड़ों को प्रदेश अध्यक्ष बनाते आ रही बीजेपी इस बार किसी सवर्ण को यह कुर्सी सौंप सकती है। इस रेस में सबसे ऊपर झंझारपुर के विधायक नीतीश मिश्रा का नाम चल रहा था, लेकिन शपथ ग्रहण के ठीक 25 दिन बाद 15 दिसंबर को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर दरभंगा सदर सीट से विधायक संजय सरावगी के नाम पर मुहर लगा दी। गुरुवार को भव्य रोड शो और शक्ति प्रदर्शन के बाद संजय सरावगी ने औपचारिक रूप से बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाल ली है। बीजेपी के लिए बिहार में बनिया प्रदेश अध्यक्ष क्यों जरूरी है.. पिछले 5 टर्म से लागातर बीजेपी पिछड़ा वर्ग से आने वाले नेताओं को ही ये कुर्सी क्यों सौंप रही है… संजय सरावगी के सहारे पार्टी क्या साधना चाहती है.. 3 पार्ट में पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट पार्ट-1ः संजय सरावगी को बिहार का बॉस बनाए जाने के 2 कारण जानिए 1– वैश्य को बिहार में दोबारा नाराज नहीं करना चाहती BJP इसके लिए थोड़ा पीछे चलते हैं लोकसभा चुनाव, यहां बीजेपी ने दो प्रयोग किए। पहला- लोकसभा चुनाव में पार्टी लगातार शिवहर से चुनाव जीतते आ रही रमा देवी को बेटिकट कर दिया। यह सीट जदयू के खाते में दी और यहां से आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को कैंडिडेट बनाया गया। यानि वैश्य की सीट सवर्ण के हिस्से में गई। दूसरा- शिवहर की बगल की सीट सीतामढ़ी से खुद को भाजपा का सिपाही बताने वाले सुनील कुमार पिंटू का पत्ता काट दिया गया। यह सीट भी जदयू को दी गई। यहां से नीतीश कुमार के दोस्त देवेश चंद्र ठाकुर चुनाव लड़े। उस समय सीधे तौर पर इसका असर नहीं दिखा, लेकिन वैश्य समाज के भीतर नाराजगी की बातें सामने आईं। वैश्य समाज के वोटों में बिखराव हुआ। सीतामढ़ी और शिवहर का खामियाजा पार्टी को आरा में भुगतना पड़ा। सबसे सुरक्षित सीट मानी जाने वाली ये सीट भाजपा हार गई। बीजेपी की चिंता की लकीरें इस बात से उभरी कि यहां से माले के सुदामा प्रसाद जीते जो वैश्य कम्युनिटी से आते हैं। वैश्य कम्युनिटी हमेशा से आंख बंद कर के बीजेपी को वोट करती आ रही है। 2- लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी ने वैश्य समाज के लिए 2 बड़े फैसले लिए पहला- पार्टी ने वैश्य समुदाय से आने वाली धर्मशील गुप्ता को महिला प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बनाया, इसके बाद इन्हें राज्यसभा भेज दिया। दूसरा- वैश्य समाज से आने वाले दिलीप जायसवाल को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया। लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद सम्राट चौधरी की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी कर दी गई । अब विधानसभा चुनाव के बाद दिलीप जायसवाल को मंत्री पद देकर संजय सरावगी को उनकी कुर्सी सौंपने का एक बड़ा कारण इस बात को भी माना जा रहा है कि वैश्य वर्ग में किसी तरह का गलत मैसेज न जाए। क्योंकि दिलीप जायसवाल भी मात्र 17 महीने ही इस पद पर रहे हैं। पार्ट-2ः अब कोर वोट बैंक पर भरोसा और जातीय संतुलन का गणित देखिए 1. अपने कोर वोटर पर भरोसा, सरकार के साथ संगठन में भी हिस्सेदारी राज्य में बिहार में बनिया-वैश्य समाज की आबादी 2.31% है। इन्हें भाजपा का कोर वोटर माना जाता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इस कम्युनिटी के 16 कैंडिडेट को बीजेपी ने टिकट दिया और सभी 16 जीत गए। वहीं, अगर ओवर ऑल NDA की बात करें तो 28 विधायक वैश्य कम्युनिटी से जीतकर आए हैं। इनमें मात्र 3 को मंत्रिमंडल में जगह मिली है, जबकि महागठबंधन से भी वैश्य कम्युनिटी के एक विधायक मोरवा से राजद के रणविजय साहू चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। ऐसे में संजय सरावगी को संगठन की सबसे बड़ी कुर्सी सौंपकर यह मैसेज देने की कोशिश की गई है कि वैश्य हमारी प्राथमिकता में हैं। सरकार से लेकर संगठन तक में आपको उचित हिस्सेदारी दी जाएगी। पॉलिटिकल एक्सपर्ट अरुण पांडेय बताते हैं, ’संजय सरावगी की ताजपोशी से भाजपा को कई स्तरों पर लाभ मिल सकता है। एक ओर इससे पिछड़ा वर्ग में यह संदेश जाएगा कि भाजपा उनके नेतृत्व को लगातार आगे बढ़ा रही है। दूसरी ओर संगठन में स्थिरता और निरंतरता बनी रहेगी।’ 2. अगड़ा और पिछड़ा में बैलेंस बनाने की कोशिश, लगातार 5वें पिछड़ा अध्यक्ष फॉरवर्ड और वैश्य के साथ गैर यादव ओबीसी पर बीजेपी लगातार फोकस कर रही है। यही कारण है कि पार्टी फॉरवर्ड और बैकवर्ड दोनों का बैलेंस बनाकर चल रही है। इनकी हिस्सेदारी का ख्याल पार्टी सरकार से लेकर संगठन तक में रख रही है। यही कारण है कि पार्टी ने 2 डिप्टी सीएम बनाए एक फॉरवर्ड तो दूसरा बैकवर्ड। बीजेपी ने अपने हिस्से से अगर 5 सवर्ण को मंत्री बनाए तो 8 पिछड़ा और अति पिछड़ा समाज से आने वाले नेताओं को मंत्री पद दिया गया। सीनियर जर्नलिस्ट इंद्रभूषण बताते हैं, ’भाजपा की यह रणनीति विपक्ष की उस राजनीति को भी चुनौती देती है, जिसमें पिछड़ा वर्ग को परंपरागत रूप से अपने पाले में मानता रहा है। लगातार पांचवें अध्यक्ष (नित्यानंद राय, संजय जायसवाल, सम्राट चौधरी, दिलीप जायसवाल) को इसी वर्ग से बनाकर भाजपा ने यह संकेत दिया है कि पिछड़ों की राजनीति पर उसका दावा कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत हो रहा है।’ पार्ट-3ः क्षेत्रीय बैलेंस…संजय के बहाने मिथिलांचल को भी साधने की कोशिश संजय सरावगी को पार्टी का मुखिया बनाकर बीजेपी ने एक फैसले से कई निशाने साधने की कोशिश की है। पार्टी ने न केवल वैश्य को मैसेज दिया, बल्कि बीजेपी के गढ़ कहे जाने वाले मिथिलांचल को भी साधने की कोशिश की है। 2025 विधानसभा चुनाव में मिथिलांचल की 46 में से 40 सीटों पर NDA की जीत हुई। यह 2020 की तुलना में 10 ज्यादा है। पिछली बार की तुलना में सीटें तो जरूर बढ़ीं, लेकिन सरकार में वहां की हिस्सेदारी आधी कर दी गई थी। पिछली सरकार में इस एरिया के 6 मंत्री थे। 20 नवंबर को बनी नई सरकार में सिर्फ 3 मंत्री पद मिले थे। ऐसे में सरावगी को आगे कर बीजेपी ने उस नाराजगी को भी दूर करने की कोशिश की है। संघ और टॉप लीडरशिप से भी अच्छे रिश्ते, संगठन का अनुभव संजय सरावगी के संघ के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं। संघ की अनुषांगिक इकाई अखिल भारती विद्यार्थी परिषद से इन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा है। लगभग 10 वर्षों तक ABVP में अलग-अलग पदों पर रहे हैं। इसके बाद 1999 में BJP युवा मोर्चा के जिला मंत्री भी रहे हैं। 2001 में दरभंगा नगर मंडल भाजपा के अध्यक्ष और 2003 में दरभंगा जिला भाजपा के महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे। 2005 से 2025 तक लगातार 6 बार दरभंगा सदर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए हैं। 2024 से 2025 तक सरकार में मंत्री भी रहे हैं। ऐसे में इनके पास संगठन के साथ सरकार में भी काम करने का अनुभव है। सरावगी के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी अच्छे रिश्ते माने जाते हैं। बीजेपी सूत्रों की मानें तो पार्टी ने जब दरभंगा सीट पर शुरुआती सर्वे कराई तो सरावगी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की बात सामने आई थी। इनके ऑप्शन पर भी चर्चा शुरू हो गई थी, लेकिन अमित शाह ने इन पर भरोसा जताया और लगातार छठी बार इन्हें यहां से टिकट मिला।
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