नालंदा में पांच साल में 55 फीसदी कम हुए प्रत्याशी:चुनावी खर्च-महंगाई से आम प्रत्याशियों का टूट रहा मोह; इस बार पूरे जिले से 68 कैंडिडेट्स

Oct 23, 2025 - 08:30
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नालंदा में पांच साल में 55 फीसदी कम हुए प्रत्याशी:चुनावी खर्च-महंगाई से आम प्रत्याशियों का टूट रहा मोह; इस बार पूरे जिले से 68 कैंडिडेट्स
नालंदा जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की संख्या में पिछले पांच वर्षों में 55 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई है। यह आंकड़ा न सिर्फ लोकतांत्रिक भागीदारी पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की बढ़ती लागत और आम जनता के राजनीतिक मोहभंग की ओर भी इशारा करता है। आंकड़ों की कहानी 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले की सात विधानसभा सीटों से कुल 144 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे थे। लेकिन 2025 के चुनाव में यह संख्या घटकर मात्र 68 रह गई है। यह गिरावट न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों के लिए चिंता का विषय भी बन गई है। नामांकन के स्तर पर भी यह प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस बार पूरे जिले से सिर्फ 95 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया था। जो 2020 की तुलना में 37 फीसद कम है। इनमें से 24 प्रत्याशियों का नामांकन रिजेक्ट हो गया और तीन ने अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद 68 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में बचे हैं। सीट वाइज विश्लेषण 2020 के चुनाव में विभिन्न सीटों से प्रत्याशियों की संख्या इस प्रकार थी। इस्लामपुर में 17 प्रत्याशी, नालंदा में 20 प्रत्याशी, हरनौत में 24 प्रत्याशी, बिहारशरीफ में 23 प्रत्याशी,राजगीर में 22 प्रत्याशी, हिलसा में 19 प्रत्याशी एवं अस्थावां में 19 प्रत्याशी। 2025 में इन सभी सीटों पर प्रत्याशियों की संख्या में भारी कमी आई है, जो लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा के लिए चिंताजनक संकेत है। महंगी होती चुनावी प्रक्रिया स्थानीय राजनीतिक पर्यवेक्षकों और आम जनता का मानना है कि चुनाव लड़ने की बढ़ती लागत ही इस गिरावट का मुख्य कारण है। निर्वाचन आयोग की ओर से निर्धारित वैधानिक खर्च की सीमा 40 लाख रुपए है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कहीं अलग है। जानकारों का कहना है कि वास्तविक चुनावी खर्च इस वैधानिक सीमा से कई गुणा अधिक होता है। प्रचार-प्रसार, रैलियों, पोस्टरों, बैनरों, वाहनों और कार्यकर्ताओं पर होने वाला खर्च आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गया है। यही कारण है कि मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के प्रत्याशी चुनावी मैदान से स्वतः ही छंटनी होते जा रहे हैं।

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