जदयू से अचानक नहीं हुआ मोहभंग, पहले ही लिखी जा चुकी थी पटकथा
भास्कर न्यूज | खगड़िया परबत्ता विधायक डॉ. संजीव कुमार का तीन अक्टूबर को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में औपचारिक रूप से शामिल होना अचानक लिया गया फैसला नहीं है। इसके संकेत बीते कई महीनों से मिल रहे थे। विधायक संजीव कुमार की पार्टी से लगातार बढ़ती दूरी को समय रहते नहीं तो पार्टी नेतृत्व ने संभाला और नहीं संवाद का सार्थक प्रयास किया गया। यही वजह रही कि अब यह राजनीतिक संबंध का पूरी तरह पटाक्षेप हो गया। बीते डेढ़ माह में एनडीए ने जिले के चारों विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किए। 28 अगस्त को बेलदौर, 3 सितम्बर को खगड़िया, 7 सितम्बर को अलौली और अंत में परबत्ता का सम्मेलन होना तय हुआ। परबत्ता में यह सम्मेलन दो बार टाला गया। 10 और 20 सितम्बर को, और अंततः 27 सितम्बर को आयोजित हुआ। लेकिन विधायक डॉ. संजीव शामिल नहीं हुए। 25 सितम्बर को मुख्यमंत्री का पसराहा (परबत्ता क्षेत्र) में कार्यक्रम था, जहां विधायक की गैरमौजूदगी ने अटकलों को और बल दिया। यह स्पष्ट था कि विधायक एनडीए के आयोजनों से लगातार दूरी बना रहे हैं। डॉ. संजीव सिर्फ विधायक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक विरासत के वारिस हैं। उनके पिता, दिवंगत डॉ. आरएन सिंह, जदयू के कद्दावर नेता रहे और पांच बार परबत्ता से विधायक तथा दो बार मंत्री भी रहे। वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते थे। 2020 में डॉ. संजीव ने इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए जदयू के टिकट पर परबत्ता सीट से जीत दर्ज की थी। बेबाक नेता की बनाई है छवि, सरकार से सवाल करने से नहीं हिचके डॉ. संजीव कुमार को खगड़िया की राजनीति में एक मुखर और जनपक्षधर नेता के रूप में जाना जाता है। कई बार उन्होंने अपनी ही सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए .टोपोलैंड और गैर-मजरुआ खास जमीन की बिक्री पर रोक के खिलाफ किसानों की ओर से आवाज बुलंद की।लगान रसीद पर रोक जैसे फैसलों का विरोध किया। गंगा नदी पर अगुवानी-सुल्तानगंज पुल हादसे में निर्माण एजेंसी की कड़ी आलोचना की।राज्यपाल से मिलकर किसानों के हित में हस्तक्षेप की मांग की। इन बयानों और तेवरों से वे सत्ता पक्ष में होते हुए भी विपक्ष जैसी भूमिका निभाते रहे, जिससे पार्टी नेतृत्व और उनके बीच विचारधारा की दूरी और गहरी होती गई।
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